Ads Area

बुद्ध जयंती पर सुलतानपुर में धम्म की ऐतिहासिक दस्तक।

बुद्ध जयंती पर सुलतानपुर में धम्म की ऐतिहासिक दस्तक।



सुलतानपुर की ऐतिहासिक धरती पर बुद्ध जयंती के अवसर पर धम्म और समता की ऐसी गूंज सुनाई दी, जिसने हजारों लोगों के हृदय को भीतर तक झकझोर दिया। वैसाख पूर्णिमा के पावन अवसर पर ग्राम सिप्तापुर स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर पार्क में हुए इस भव्य आयोजन में हजारों की संख्या में श्रद्धालु, धम्म अनुयायी, सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्ध विचारों में आस्था रखने वाले लोग एकत्रित हुए। यह केवल एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह एक सामाजिक चेतना का जागरण था, जो मानवता, करुणा और ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे गया।


सुलतानपुर की यह धम्म गूंज केवल स्थानीय नहीं थी, यह उस परिवर्तन की आहट थी जिसकी कल्पना बाबा साहेब ने अपने जीवनकाल में की थी। आयोजन की सबसे उल्लेखनीय बात यह रही कि न इसके पीछे कोई बड़ा बजट था, न कोई राजनीतिक मंच, बल्कि स्थानीय ग्रामवासियों, युवाओं और धम्मसेवकों की निःस्वार्थ मेहनत और तपस्या थी, जिन्होंने इस कार्यक्रम को ऐतिहासिक बना दिया। ‘दि बुद्धिस्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया’ की सुलतानपुर शाखा, अम्बेडकर कल्याण समिति और युवा संघर्ष समिति ने मिलकर इस आयोजन को क्रांतिकारी चेतना में परिवर्तित कर दिया।


कार्यक्रम की शुरुआत भंते शीलवचन के उद्बोधन से हुई, जिन्होंने कहा, “बुद्ध की वाणी आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी दो हजार साल पहले थी। जब तक समाज में विषमता और पीड़ा है, तब तक बुद्ध का धम्म ही एकमात्र राह है।” इसके बाद भंते अस्यजीत ने अपने संबोधन में लोगों से आग्रह किया कि वे बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग को केवल सुनें नहीं, उसे जीवन में उतारें, तभी सच्चा परिवर्तन आएगा।

मुख्य अतिथि डॉ. सुरेश कौशल ने अपने संबोधन में कहा, “बुद्ध केवल एक धर्म या परंपरा नहीं हैं, वह विवेक और मानवता के प्रतीक हैं। आज की दुनिया जो हिंसा, लालच और द्वेष में उलझी हुई है, उसे यदि कोई रास्ता निकाल सकता है, तो वह बुद्ध का रास्ता है।” उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे सोशल मीडिया से आगे बढ़कर जमीन पर उतरें और समता व बंधुत्व की अलख जगाएं।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रमाशंकर राम ने बेहद भावुक और चिंतनशील अंदाज़ में कहा, “आज जब दुनिया खुद को खो रही है, तब बुद्ध हमें फिर से खुद से जोड़ते हैं। यह आयोजन कोई साधारण कार्यक्रम नहीं, बल्कि आत्मा को झकझोर देने वाला अनुभव है। हमें यह समझना होगा कि आज भी बुद्ध का मार्ग प्रज्ञा, शील और करुणा समाज के हर सवाल का उत्तर है।” उन्होंने अपने भाषण के अंत में बोधगया में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने की भी घोषणा की और कहा कि यह हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी है कि हम हर उस आवाज के साथ खड़े हों जो इंसानियत के पक्ष में हो।


डॉ. राजेश गौतम ने बुद्ध के विचारों की वैज्ञानिकता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बुद्ध का धम्म केवल धार्मिक उपदेश नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति की शिक्षा है। वहीं डॉ. दिनेश गौतम ने शिक्षा और सामाजिक चेतना को धम्म के प्रचार का मूल आधार बताया।

डॉ. राजकरन ने अपने संबोधन में कहा कि हमें अब केवल भाषणों से आगे बढ़कर ग्राम स्तर पर धम्म केंद्रों की स्थापना करनी चाहिए ताकि हर बच्चा बुद्ध की शिक्षाओं से परिचित हो सके। कार्यक्रम में ई. मुकेश दोहरे ने बौद्ध आर्किटेक्चर और संस्कृति की विरासत को बचाने पर ज़ोर दिया।

महेश बौद्ध ने कहा कि यह समय है जब हम बाबा साहेब के अधूरे सपनों को पूरा करें। उन्होंने यह भी कहा कि आज का यह आयोजन गांवों में जागरूकता की एक नई लहर बन सकता है। रामखेलावन ने लोगों से एकता और अनुशासन में रहने की अपील की।

इंद्रावती बौद्ध ने महिलाओं की भूमिका पर बल देते हुए कहा, “बुद्ध के समय से लेकर आज तक महिलाओं की भागीदारी बौद्ध धम्म की ताकत रही है। अब समय है कि हम फिर से उसी भूमिका को अपनाएं।” डॉ. जयभीम ने युवाओं से आह्वान किया कि वे धम्म और संविधान के विचारों को साथ लेकर चलें।

श्यामलाल बौद्ध ने बौद्ध साहित्य के अध्ययन पर ज़ोर देते हुए कहा कि जब तक हम खुद अपने इतिहास को नहीं पढ़ेंगे, तब तक हमारी चेतना अधूरी रहेगी।

इस ऐतिहासिक आयोजन के आयोजक सुरेश बौद्ध, डॉ. सुभाष गौतम और हीरालाल ने संयुक्त रूप से सभी आगंतुकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम किसी एक व्यक्ति या संस्था का नहीं, बल्कि जनता की सामूहिक भावना का परिणाम है। उन्होंने बताया कि महीनों की तैयारी, स्वैच्छिक श्रम और जनभागीदारी ने इसे सफल बनाया।

डॉ. सुभाष गौतम ने कहा कि बाबा साहेब और तथागत बुद्ध का सपना अब गांव-गांव तक पहुंच रहा है और यह शुरुआत अब रुकने वाली नहीं है। हीरालाल ने अपने भावुक वक्तव्य में कहा, “आज सुलतानपुर की यह धरती इतिहास को दोहराती दिख रही है। अगर हम इस अवसर को नहीं पहचानते, तो हम आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय करेंगे।”

कार्यक्रम के अंत में हजारों की संख्या में उपस्थित लोगों ने ‘नमो बुद्धाय’, ‘जय भीम’ और ‘जय समता’ के नारों के साथ इस ऐतिहासिक क्षण को जीवंत बना दिया। धम्म दीक्षा, भजन, और बुद्ध वंदना के साथ यह आयोजन समाप्त हुआ, लेकिन लोगों के मन में यह भावना और भी प्रबल हो गई कि परिवर्तन अब केवल सपना नहीं, सच्चाई बनने जा रहा है।

सुलतानपुर की यह वैसाख पूर्णिमा केवल एक तिथि नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति की शुरुआत बन गई है। यह आयोजन आने वाले समय में धम्म चेतना के एक नए युग की नींव रख चुका है, और अब यह यात्रा रुकने वाली नहीं है।

Top Post Ad

Below Post Ad