सुल्तानपुर, यूपी
@सरफराज अहमद #NOW NATION LIVE..
भारत में पत्रकारिता, जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है, आज अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रही है। हाल ही में एनटीटीवी भारत के पत्रकार निसार अहमद को मिली जान से मारने की धमकी इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि सच्चाई को उजागर करने का काम कितना जोखिम भरा हो गया है। धमकी देने वाले नंबर पर कुख्यात गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई की तस्वीर होना और संभावित रूप से अंतरराष्ट्रीय कॉल के जरिए धमकी मिलना इस मामले की गंभीरता को और बढ़ाता है। इस घटना ने न केवल पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मौलिक अधिकारों पर भी गहरी चोट की है।
धमकी का मामला और पुलिस की प्रतिक्रिया
पुलिस अधीक्षक कुंवर अनुपम सिंह ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई का आश्वासन दिया है। उन्होंने नगर कोतवाल धीरज कुमार को निर्देश दिए हैं कि मुकदमा दर्ज कर वैधानिक कार्रवाई शुरू की जाए। यह कदम स्वागत योग्य है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई केवल औपचारिकता तक सीमित रहेगी या वास्तव में अपराधी को सजा दिलाने में सफल होगी? बार-बार इस तरह की घटनाओं का सामने आना यह दर्शाता है कि संगठित अपराध और पत्रकारों को डराने-धमकाने की घटनाएं कहीं न कहीं सिस्टम की कमजोरियों का फायदा उठा रही हैं।
पत्रकारों के हितों की रक्षा की मांग:अनिल द्विवेदी
वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी ने इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा की है। उन्होंने पत्रकारों की सुरक्षा के लिए विशेष कानून बनाने की मांग उठाई है, जो न केवल पत्रकारों को निडर होकर काम करने का भरोसा देगा, बल्कि ऐसी धमकियों को रोकने में भी प्रभावी होगा। द्विवेदी ने प्रशासन से त्वरित जांच और आरोपी की गिरफ्तारी की मांग की है, ताकि पत्रकारों के बीच भय का माहौल खत्म हो और वे बिना किसी दबाव के अपनी जिम्मेदारी निभा सकें। उनकी यह मांग समय की जरूरत है, क्योंकि पत्रकारों पर हमले और धमकियां अब असामान्य नहीं रह गई हैं
प्रशासन और सत्ता की उदासीनता पर सवाल:वरुण मिश्रा
कांग्रेसी नेता वरुण मिश्रा ने इस मामले में प्रशासन और सत्ताधारी पक्ष की उदासीनता को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि चौथे स्तंभ पर हमला लोकतंत्र पर हमला है, और ऐसी घटनाएं सत्ता और प्रशासन की नाकामी को उजागर करती हैं। यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर क्यों पत्रकारों को बार-बार निशाना बनाया जा रहा है? क्या यह इसलिए है कि सत्ता और अपराधी तत्वों के बीच कोई गठजोड़ है, या फिर इसलिए कि पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कोई ठोस नीति ही नहीं है?
निष्पक्ष पत्रकारिता पर मंडराता खतरा
पत्रकार निसार अहमद का मामला कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। हाल के वर्षों में कई पत्रकारों को धमकियां मिली हैं, कुछ पर हमले हुए हैं, और कुछ ने अपनी जान तक गंवाई है। गौरी लंकेश, शुझाात बुखारी,सीतापुर कांड, जो समाज को सच दिखाने का काम करता है, उनको इस तरह की धमकियां मिलती हैं, तो यह न केवल उसकी व्यक्तिगत सुरक्षा पर सवाल उठाता है, बल्कि पूरे समाज के लिए खतरे की घंटी है।