सपा के पूर्व और वर्तमान दोनों पैराशूटेड प्रत्याशी सुल्तानपुर सपाई गुटबाजी का भुगत रहे खामियाजा?

सपा के पूर्व और वर्तमान दोनों पैराशूटेड  प्रत्याशी सुल्तानपुर सपाई गुटबाजी का भुगत रहे खामियाजा?






सपाई गुटबाजी का हाल तो ये है की जो विधानसभा में अपना वजूद नहीं बचा पाए वही बने है प्रत्याशी के बड़े खेवय्या?

टिकट के लिए लखनऊ तक 'भीम' की कसरत और घमासान फिर CM के साथ वायरल फोटो से भीम माने गए बागी, टिकट न मिलने पर भीम पूर्व में भी दोहरा चुके हैं ये कारनामा!


वहीं दूसरी तरफ भीम का टिकट काटकर गोरखपुर से सपा ने एक और पैराशुटेड प्रत्याशी पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को उतारा। लेकिन जमीनी स्तर पर सूत्रों की माने तो अभी तक राम भुवाल जनता के बीच अपनी पैठ नहीं बना सके, लग्जरी गाड़ियों में AC बंद शीशे में बैठ प्रत्याशी का मोबाइल फोन के साथ लगे रहना क्षेत्र में बना चर्चा का विषय। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव फिलहाल मौके की नजाकत को भांपते हुए सुल्तानपुर लोकसभा सीट को सूरत-इंदौर जैसे हालात से बचाने में कामयाब तो हो गए लेकिन उनके भेजे पैराशूट प्रत्याशी चुनाव को लेकर कितना संजीदा है और जनता पर कितनी पकड़ है इससे सपा सुप्रीमो अनभिज्ञ है, राम भुवाल निषाद को टिकट दिलवाने में अहम भूमिका निभाने वाले सपा के एक गुटों के बड़े-बड़े नेता पूर्व विधायक, महासचिव जिला अध्यक्ष जमीनी स्तर की सच्चाई को दबाते हुए लखनऊ दफ्तर पर "आल इज वेल" की लगातार फीडबैक दे रहे हैं!





सूरत और इंदौर के हालात को देखते हुए अखिलेश यादव ने प्रत्याशी को चलता कर दिया था। जिससे तस्वीर से गर्द साफ हुई और राम भुवाल निषाद सुलतानपुर सीट से सपा के नए प्रत्याशी घोषित कर दिए गए।





सपा के पूर्व प्रत्याशी रहे 'भीम निषाद' ने टिकट कटने के दसवें दिन जब लखनऊ में सीएम योगी के साथ सीट शेयर की। उसका खामियाजा अब उन्हें ये भुगतना पड़ रहा है कि दोबारा टिकट के लिए वो कसरत कर रहे। और लखनऊ पार्टी दफ्तर पर अपने समर्थकों के साथ पहुंचे और धरने पर भी बैठे, उनकी मांग थी कि वह अखिलेश यादव से मुलाकात करेंगे उसके बाद ही वह दफ्तर से हटेंगे लेकिन अखिलेश यादव ने उन्हें समय नहीं दिया और उन्हें अब इग्नोर किया जा रहा। पार्टी दफ्तर के बाहर का एक वायरल वीडियो भी सामने आया है जिसमें भीम निषाद के परिवार के लोग अखिलेश से गुहार लगा रहे हैं की चुनाव नहीं लड़ाना था तो इतना खर्च क्यों कर दिया। परिवार ने कहा कि हमारा बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।


16 मार्च को प्रत्याशी बने 14 अप्रैल को हुए पैदल 

यहां बात हो रही है 16 मार्च को घोषित हुए सपा प्रत्याशी भीम निषाद की। अंबेडकर नगर से आकर करीब आठ महीनों से उन्होंने जिले में सियासी जमीन तैयार की। लेकिन जिला स्तर पर पार्टी में सबको ठेंगे पर रखना और बड़बोला पन उनके लिए घातक बना। टिकट मिलते ही एक बड़ा धड़ा उनका मुखालिफ हो गया। उन्होंने भी मुठ्ठी भर सपाइयों को अपना हितकारी समझकर उनके सुर में अपना सुर मिला दिया। ऐसे में बगावत की लंबी खाई बनी और बात अखिलेश तक पहुंची। लखनऊ में दो बार भीम और दूसरे गुट की पेशी हुई, दो बार सुल्तानपुर ऑब्जर्वर भेजे गए लेकिन डैमेज कंट्रोल नहीं हो सकता। अंत में 14 अप्रैल को अखिलेश ने टिकट बदला पैराशूट कंडीडेट पूर्व मंत्री राम भुआल निषाद को गोरखपुर से सुल्तानपुर में लाकर खड़ा कर दिया। लेकिन यही स्थिति कमोबेश राम भुआल निषाद के साथ भी हो रही है, सपा खेमे की गुटबाजी अभी भी किसी से छिपी नहीं है। साफ दिखता नजर आ रहा है कि समाजवादी पार्टी में कई फाड़ धरातल पर काम करते दिख रहे हैं,जिससे साफ माना जा रहा है की राम भुवाल निषाद भी बहुत देर तक बीजेपी के प्रत्याशी के सामने टिक नहीं पाएंगे। सपा खेमे की गुटबाजी सपा प्रत्याशी की मटिया मेल करने में कोई कोर कसर बाकी नही छोड़ेंगे।

24 अप्रैल को सीएम योगी से की थी भेंट 
राम भुआल के आते ही सपा को वो गुट तत्काल उनसे जुड़ा जो भीम का विरोध करता आ रहा था। लेकिन भीम के साथ खड़े गुट के सपाई भीम को गुमराह कर बैठे। अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए उन सबने भीम को मोहरा बनाकर उनका कंधा इस्तेमाल किया। पहले राम भुआल का पुतला फुंकवाया। फिर भीम को राय दे डि कि सीएम से जाकर मिलो। 24 अप्रैल को भीम अंबेडकर नगर के भाजपा कंडीडेट रितेश पाण्डेय के साथ सीएम योगी के टेबल तक पहुंच गए। ये महज दबाव बनाने के लिए था। लेकिन ये दुर्भाग्य ही रहा कि सीएम के ट्विटर हैंडल से फोटो शेयर हो गई और सूरत व इंदौर कांड यहां होने से बच गया। इसके बाद भीम ने सफाई बहुत दी लेकिन वो एक काम नहीं आई। 

खुद और बेटे के नाम से खरीदा है पर्चा 

यही नहीं तीन दिन पूर्व भीम ने साजिश के तहत सपा के नाम से अपने और बेटे के नाम पर्चा ले लिया। लेकिन सपा नेतृत्व ने सब कुछ देख सुन अनसुना कर दिया। तब गुरुवार को पार्टी दफ्तर के सामने भीम धरने पर बैठ गए। पर उनकी ये एक्टिंग भी फेल हो गई। अखिलेश यादव ने उन्हें मिलने का समय ही नहीं दिया। अब कयास लगाया जा रहा है कि भीम निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में आकर कुछ निषादों के वोट काटकर भाजपा को लाभ पहुंचाने का काम करेंगे। हालांकि भीम इसके लिए पहले से मशहूर हैं। अंबेडकर नगर में भी वो बागी तेवर दिखा चुके हैं। 

ऐसा रहा है भीम निषाद का कार्यकाल 

भीम निषाद अंबेडकरनगर के जलालपुर विधानसभा अंतर्गत रफीगंज के निवासी हैं। उनका परिवार आजमगढ़ के अतरौलिया विधानसभा में रहता है। 2012 में सपा से बागी होकर जलालपुर से चुनाव लड़े उन्हें 18 से अधिक वोट मिले थे। 2012 के बाद वह बसपा में शामिल हो गए और बसपा ने उन्हें शाहगंज विधानसभा का प्रभारी बना दिया था। लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव में जब टिकट नहीं मिला तो भीम निषाद बसपा छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वे जलालपुर विधानसभा से टिकट मांग रहे थे लेकिन 2019 के उपचुनाव में जब भाजपा ने भीम निषाद को टिकट नहीं दिया तो वह सपा में शामिल हो गए।

रिपोर्ट/सरफराज अहमद