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जिंदा साबित होने की जंग: मैं जिंदा हूँ, सांस ले रहा हूँ, फिर भी सरकारी कागजों में हूं मृत।

जिंदा साबित होने की जंग: मैं जिंदा हूँ, सांस ले रहा हूँ, फिर भी सरकारी कागजों में हूं मृत।

सुल्तानपुर यूपी 

गौहनिया गांव के राम प्रसाद यादव के, जो पिछले चार साल से अपनी पहचान और जमीन के हक के लिए कानूनी जंग लड़ रहे हैं। बल्दीराय तहसील के हलियापुर क्षेत्र के इस निवासी ने अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसने तहसीलदार को तीन महीने में मामले के निपटारे का आदेश दिया है।

मामला कैसे शुरू हुआ?

बात तब शुरू हुई जब अयोध्या-रायबरेली राष्ट्रीय राजमार्ग के चौड़ीकरण के लिए गौहनिया गांव की जमीन अधिग्रहित की गई। रामजियावन यादव के चार बेटों—राम प्रसाद, रामखेलावन, राम खदेरू और शिवपल्टन—के नाम पर दर्ज जमीन में से एक गाटा संख्या की 44 एयर जमीन अधिग्रहण में गई। इसके लिए 27 लाख रुपये का मुआवजा निर्धारित हुआ। लेकिन मार्च 2021 में अभिलेखों में हेराफेरी कर राम प्रसाद और शिवपल्टन को एक ही व्यक्ति बताकर मृत घोषित कर दिया गया। इसका फायदा उठाते हुए रामखेलावन के बेटे देवानंद ने मुआवजे पर एकाधिकार कर लिया।

सरकारी कागजों में 'मृत' राम प्रसाद

जब मुआवजे का बंटवारा शुरू हुआ, तब राम प्रसाद को पता चला कि उन्हें कागजों में मृत दिखाया गया है। यह खुलासा उनके लिए सदमे से कम नहीं था। उन्होंने तहसील से लेकर जिलाधिकारी, मंत्री सुरेश पासी, सांसद स्मृति ईरानी और मुख्यमंत्री तक अपनी गुहार लगाई। करीब 21 महीने की लंबी जद्दोजहद के बाद दिसंबर 2022 में राजस्व अभिलेखों में उन्हें पुनः जीवित घोषित किया गया, लेकिन मामला फिर कानूनी पेचीदगियों में उलझ गया।

हाईकोर्ट की शरण और नया आदेश

चार साल से अधिक समय तक समाधान न मिलने पर राम प्रसाद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने मामले की गंभीरता को देखते हुए बल्दीराय तहसीलदार को तीन महीने के भीतर पत्रावली निस्तारित करने का सख्त निर्देश दिया है। राम प्रसाद का कहना है, "मैं केवल अपनी पहचान और हक की बहाली चाहता हूँ। सरकारी फाइलों में मृत होना मेरे लिए असहनीय है।"

एक सामान्य नागरिक की असाधारण लड़ाई

राम प्रसाद की यह लड़ाई न केवल उनकी निजी जंग है, बल्कि यह उस व्यवस्थागत खामी को भी उजागर करती है, जहां कागजी हेराफेरी किसी जीवित व्यक्ति को 'मृत' बना सकती है। उनकी कहानी अन्याय के खिलाफ हिम्मत और हक की लड़ाई का प्रतीक है। अब सबकी निगाहें तहसीलदार के फैसले पर टिकी हैं, जो अगले तीन महीनों में इस मामले को सुलझाएंगे।राम प्रसाद की यह कहानी हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो अपने हक के लिए संघर्ष कर रहा है। उनकी एक ही पुकार है— "मुझे इंसाफ चाहिए।"

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