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किशोरियों की सेहत के लिए बड़ा कदम : माहवारी जागरूकता और पैड वितरण अभियान

किशोरियों की सेहत के लिए बड़ा कदम : माहवारी जागरूकता और पैड वितरण अभियान


सुल्तानपुर यूपी 
रिपोर्ट सरफराज अहमद 

समाज में अक्सर जिस विषय पर बात करने से लोग हिचकिचाते हैं, उसी पर B2 केयर HSW फाउंडेशन ने खुलकर संवाद किया। 20 सितंबर 2025 को संस्था ने सुल्तानपुर में माहवारी जागरूकता एवं सेनेटरी पैड वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसे HENKEL INDIA के सहयोग से सम्पन्न कराया गया।



क्यों ज़रूरी है यह पहल?

भारत में आज भी माहवारी से जुड़े कई मिथक और शर्म समाज में गहराई तक जमे हुए हैं। इसी वजह से कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझती रहती हैं। कार्यक्रम में विशेषज्ञों ने किशोरियों को बताया कि माहवारी कोई बीमारी नहीं, बल्कि एक सामान्य जैविक प्रक्रिया है। स्वच्छता अपनाकर लड़कियां आत्मविश्वास से जीवन और पढ़ाई दोनों आगे बढ़ा सकती हैं।



कार्यक्रम की खास बातें

१. डॉ. ऋषि रंजन पवन और उनकी टीम ने माहवारी चक्र की वैज्ञानिक जानकारी दी। 

२. स्वच्छता न रखने पर होने वाले संक्रमण और सर्वाइकल कैंसर के खतरे पर चर्चा की गई।

३. मानसिक स्वास्थ्य और आत्मविश्वास बढ़ाने के उपाय भी बताए गए।

४. अंत में सभी किशोरियों को मुफ्त सेनेटरी पैड वितरित किए गए।




सात वर्षों की सेवा यात्रा

B2 केयर HSW फाउंडेशन पिछले 7 वर्षों से समाज के कमजोर वर्गों के लिए कार्यरत है। 

१. संस्था ने शेल्टर होम्स में खाद्य बैंक स्थापित किए

२. कोविड लॉकडाउन में अस्पतालों को भोजन पहुँचाया

३. गरीब परिवारों की बेटियों की शादी में सहयोग दिया

४. स्लम क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए

५. वृद्धाश्रम और दिव्यांग बच्चों की मदद की

६. 14 से अधिक राज्यों में स्वच्छता और शिक्षा से जुड़े अभियान चलाए

संस्था अब तक CWA CRPF, CONCOR INDIA और HENKEL INDIA जैसी संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर चुकी है।



विशिष्ट अतिथियों की मौजूदगी

कार्यक्रम में कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे जिनमें भूपेश सिंह (क्लस्टर मैनेजर, साउथ ईस्ट एशिया), पीसी ठाकुर (प्रबंध निदेशक, यूपी हैंडलूम), सुधीर अग्रवाल (निदेशक), अनामिका मिश्रा दुबे (प्राचार्य, जयपुरिया स्कूल), पीसी झा (पूर्व डीआईजीपी, सीआरपीएफ) और पदम झा (महासचिव, B2 केयर HSW फाउंडेशन) शामिल रहे।


यह कार्यक्रम सिर्फ सेनेटरी पैड बांटने का नहीं, बल्कि सोच बदलने का प्रयास था। माहवारी पर संवाद की यह पहल समाज को उस दिशा में ले जाती है जहाँ लड़कियां बेझिझक, स्वस्थ और आत्मनिर्भर होकर आगे बढ़ सकें।

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